छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड द्वारा इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ क्रॉफ्ट एंड डिजाइन (आईआईसीएडी) जयपुर से पढ़े ट्राइबल यंगस्टर्स लाखों रुपए की जॉब छोड़ दे रहे बेहतर स्किल ट्रेनिंग

आज के यंगस्टर्स अनेक फील्ड में स्थापित मल्टीनेशनल कंपनियों में जॉब पाने के लिए दर्जनों बार इंटरव्यू देते हैं लेकिन कामयाबी बहुत कम को मिल पाती है। वहीं, दूसरी ओर राज्य के कुछ ट्राइबल यंगस्टर्स हैं, जिन्होंने मल्टीनेशनल कंपनी में लाखों रुपए की जॉब छोड़ दी है। मकसद छत्तीसगढ़ की हस्तशिल्प आर्ट को माडर्न और इनोवेटिव बनाने के साथ यहां के शिल्पकाराें को बेहतर ट्रेनिंग देना है।

खास बात ये है कि जाॅब छोड़ने वाले सभी कम आमदनी वाले परिवार से ताल्लुक रखते हैं। बावजूद राज्य के बस्तर, ढोकरा, गोदना, टेराकोटा और बेलमेटल जैसे अनेक क्राफ्ट आर्ट के प्रति इनकी लगन को सैल्यूट किया जाना चाहिए। इसके अलावा कुछ युवा दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में लोगों को छत्तीसगढ़ी आर्ट से रूबरू करवा रहे हैं। ये यंगस्टर्स इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ क्रॉफ्ट एंड डिजाइन (आईआईसीएडी) जयपुर से पासआउट हैं। 2011 से छग शासन का हस्तशिल्प विकास बोर्ड प्रतिवर्ष पांच हस्तशिल्पकारों के बारहवीं पास बच्चों को आईआईसीएडी भेजती है। जहां 4 साल के स्नातक कोर्स का खर्च 10 लाख रुपए (प्रति स्टूडेंट्स) बोर्ड देती है। पहले बैच के पासआउट स्टूडेंट्स दीपक कुमार उईके नारायणपुर, यशवंत कुमार कश्यप बस्तर, संजय कुमार दास बस्तर, अशोक कुमार मिरी बिलासपुर और ललित कुमार विश्वकर्मा कोंडागांव जिले से हैं।

हस्तशिल्प में ये 14 आर्ट्स

छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प अार्ट्स में मुख्यत: वे शिल्प शामिल किए जाते हैं जो हाथ से बनाए जाते हैं। इसमें 14 क्राफ्ट जैसे टेरोकोटा, बेलमेट, बांस, जूट, लकड़ी, आयरन, कौड़ी, तुम्बा, ट्रेडिशनल क्लॉथ, पत्थर, एम्ब्रायडरी, ट्राइबल पेंटिंग, कारपेट और गोदना पेंटिंग है।

आईआईसीएडी में अभी तक दो दर्जन छात्रों को मिला पढ़ने का मौका

छत्तीसगढ़ ग्रामद्योग विभाग के प्रमुख सचिव सुनील कुुजूर बताते हैं कि राज्य में हस्तशिल्प के क्षेत्र में बेहतर काम हो रहा है। इसे विश्व पटल पर निखारने के लिए राज्य सरकार परंपरागत शिल्पकारों के बच्चों को आईआईसीएडी जैसी प्रतिष्ठित संस्थान भेज रही है। यहां से पढ़कर निकलने वाले बच्चों को मास्टर ट्रेनर के रूप में नौकरी दी जाती है। इससे राज्य के अन्य शिल्पकारों को नॉलेज मिलता है। हमारी पूरी कोशिश होगी कि पासआउट छात्रों का लाभ राज्य के सैकड़ों शिल्पकारों को मिलता रहे।

ज्यादातर छात्र ट्राइबल एरिया से : राज्य के शिल्पकारों के बच्चों को आईआईसीएडी में भेजे जाने की योजना शुरू होने से अब तक दो दर्जन से ज्यादा छात्रों को इसका फायदा मिला है। खास बात है कि अधिकांश छात्र ट्राइबल एरिया से हैं। 2016-17 सत्र के लिए दीपक झोरका रायगढ़, राजेश कुमार कोंडागांव, पिंटू नाग बस्तर, उमेंद्र पाल सिंह कोरबा और मनोज कुमार का सलेक्शन हुआ है।

शिल्पकारों में स्किल डेवलप करने 6 लाख का पैकेज छोड़ा

अशोक कुमार मिरी बिलासपुर जिले के बिल्हा ब्लॉक स्थित ग्राम उड़गन के निवासी हैं। उन्होंने गांव के आसपास शिल्पकारी काम में जुटे लोगों का स्किल डेवलपमेंट करने के लिए देश की एकमात्र स्टोन टेक्नाेलॉजी इंस्टीट्यूट अंबाजी गुजरात में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी ठुकरा दी। ये जॉब 6 लाख रुपए पैकेज का था। इसके अलावा बेंगलुरु में एक मल्टीनेशन कंपनी में जॉब नहीं की। अशोक बताते हैं कि पिता को बचपन से शिल्पकारी और मजदूरी का काम करते देखा हूं। वो आगे बढ़ नहीं पाए। कारण उन्होंने हस्तशिल्प आर्ट में कोई इनोवेशन, मॉडर्नाइज या टेक्नोलॉजी का उपयोग नहीं किए। इसलिए आज एक संस्था बनाकर शिल्पकारों में शिल्पी आर्ट के अलावा अन्य स्किल डेवलपमेंट करने के लिए काम कर रहा हूं। राज्य में एक क्रॉफ्ट एंड डिजाइन इंस्टीट्यूट की आवश्यकता है क्योंकि छत्तीसगढ़ में हस्तशिल्प आर्ट की अनेक विधा शिल्पकारों के पास है। जरूरत है तो केवल स्किल डेवलप करने की।

आईआईसीएडी का फायदा दूसरों को देने छोड़ी नौकरी

यशवंत कुमार कश्यप बस्तर जिले के भोंड गांव में रहते हैं। पिता रामनाथ कश्यप शिल्पकार हैं। परिवार में पांच-भाई बहन हैं। पिता की आमदनी ज्यादा नहीं है। कर्ज लेकर बेटियों की शादी की। यह सब देख यशवंत ने आईआईसीएडी में जाने का फैसला किया। पढ़ाई में होशियार होने के कारण यहां सलेक्शन हो गया। 4 साल स्टोन, वुड, मेटल, बेम्बू, रॉड और जूम्बा समेत अनेक क्राफ्ट आर्ट की डिजाइन बारीकी से सीखी और कैंपस सलेक्शन में बेंगलुरु स्थित टाइटन कंपनी में 4 लाख रुपए पैकेज का जॉब मिल गया। उन्होंने यहां देखा कि किस तरह हमारी बनाई हुई शिल्प आर्ट को महंगे दामों पर बेचा जाता है। यशवंत ने सोच क्यों न गांव जाकर अपने यंगस्टर्स शिल्पकारों को आईआईसीएडी में पढ़ने का फायदा दें। फिर अपनी बनाई आर्ट को इन्हीं कंपनियों को ज्यादा दामों पर बेचें। यशवंत ने कुछ महीने बाद नौकरी छोड़ दी और बस्तर आकर यहां के शिल्पकारों को निशुल्क ट्रेनिंग देने का काम शुरू कर दिया।

आईआईसीएडी में प्रवेश प्रक्रिया

प्रतिवर्ष जून-जुलाई माह में राज्य के 11 जिलों में स्थित हस्तशिल्प विकास बोर्ड ऑफिस से फॉर्म निशुल्क प्राप्त किया जा सकता है। जांच के बाद फॉर्म हेड ऑफिस रायपुर भेजा जाता है। योग्य कैंडिडेट को परीक्षा के लिए रायपुर बुलाया जाता है। जहां मेरिट लिस्ट के आधार पर इंटरव्यू लिया जाता है। इस दौरान बोर्ड और आईआईसीएडी के अधिकारी मौजूद रहते है। इस तरह 5 स्टूडेंट्स को आईआईसीएडी के लिए सिलेक्ट किया जाता है। आईआईसीएडी में प्रवेश के लिए कैंडिडेट के माता-पिता में किसी एक का भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय या छग हस्तशिल्प विकास बोर्ड से रजिस्‍टर्ड होना जरूरी है।

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