आईआईआईटी संबंधित विधयेक ध्वनिमत से पारित, 15 संस्थानों को मिला डिग्री देने का अधिकार

नई दिल्ली :  लोकसभा ने सार्वजनिक-निजी भागीदारी से स्थापित भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईआईटी) को राष्ट्रीय महत्व का दर्जा देने से संबंधित विधयेक को बुधवार को ध्वनिमत से पारित कर दिया। विधेयक के कानून बन जाने से देश के 15 आईआईआईटी संस्थानों को डिग्री देने का अधिकार मिल जाएगा। मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानों को राष्ट्रीय महत्व का दर्जा मिलने से छात्रों को अच्छी शिक्षा मिलेगी और देश में उनके लिए रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे जिससे प्रतिभा पलायन को रोका जा सकेगा।

उन्होंने आईटी क्षेत्र में बेरोजगारी बढऩे की आशंकाओं को निर्मूल बताते हुए कहा कि आगामी पांच वर्ष में इस क्षेत्र में सत्तर लाख नए रोजगारों का सृजन होगा। जावड़ेकर ने कहा कि देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, जरूरत सिर्फ उन्हें प्रोत्साहन देने की है। उन्होंने कहा, औद्योगिक क्रांति और हार्डवेयर क्रांति के दौरान हम चूक गए थे, लेकिन इस बार हमें चूकना नहीं है। सरकार का प्रयास है कि छात्रों को देश में ही वे तमाम सुविधाएं दी जाएं, जिसकी तलाश में वे विदेशों का रुख न करें।

उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए काफी प्रयास कर रही है और राज्यों को भी शिक्षा के लिए बजट की पर्याप्त व्यवस्था करनी चाहिए। सरकार ने इन शिक्षा संस्थानों में रिक्त पदों को भरने की व्यवस्था की है और जल्द ही प्राध्यापकों के तीन सौ रिक्त पदों को भरा जाएगा। मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा कि शिक्षा राजनीति का नहीं, बल्कि राष्ट्रनीति का विषय है और इसके लिए सबको मिलकर काम करना होगा।

इससे पहले चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस के दीपेन्द्र सिंह हुड्डा ने सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में रोजगार के घटते अवसर का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने हर साल दो करोड़ रोजगार सृजित करने का वादा किया था, लेकिन सच्चाई यह है कि रोजगार के अवसर घट रहे हैं। उन्होंने मैकेंजी की सर्वेक्षण रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि मैंकेजी ने अगले तीन वर्ष में आईटी क्षेत्र में रोजगार में कटौती की संभावना जताई है। उन्होंने कहा कि अमरीका की एच1बी वीजा नीति और ऑस्ट्रेलिया के ‘447-वीजा कार्यक्रम’ के कारण दोनों देशों में भारतीय पेशेवरों के लिए रोजगार की संभावनाएं कम होंगी।

भाजपा के रमेश कुमार पोखरियाल ‘निशंक’ ने कहा कि आईआईआईटी (पीपीपी) विधेयक 2017 के पारित होने से 15 आईआईआईटी संस्थानों को राष्ट्रीय महत्व के संस्थान का दर्जा हासिल हो जाएगा और वहां पढऩे वाले छात्रों को संस्थान डिग्री प्रदान कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि इस विधेयक पर अमल के बाद उद्योगों की आवश्यकताओं के अनुसार पाठ्यक्रम तैयार हो सकेंगे, जिससे मोदी सरकार के स्किल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसे अभियान सफल होंगे।

अन्नाद्रमुक के के. एन. रामचंद्रन ने इसे एक अच्छा प्रयास तो बताया, लेकिन वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के मद्देनजर पीपीपी मॉडल में राज्य की हिस्सेदारी कम करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि सरकार ने पीपीपी मॉडल के इस संस्थान के लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकार और निजी क्षेत्र की भागीदारी क्रमश: 55 प्रतिशत, 35 प्रतिशत और 15 प्रतिशत निर्धारित की गई है, लेकिन जीएसटी के कारण राज्य सरकारों के कमाई के साधन समाप्त हो चुके है, इसलिए इसमें इनकी हिस्सेदारी 15 प्रतिशत कम की जानी चाहिए और यह बोझ खुद केंद्र को वहन करना चाहिए।

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