एक मंत्रालय से जुड़ें सभी कौशल विकास कार्यक्रम : एसोचैम

नई दिल्ली : अलग- अलग मंत्रालयों द्वारा चलाए जा रहे कौशल विकास कार्यक्रमों को एक ही कौशल विकास मंत्रालय के तहत लाया जाना चाहिए और इसके लिए कम से कम 25,000 करोड़ रुपये के बजट का इंतजाम किया जाना चाहिए। यह यह सुझाव उद्योग चेंबर एसोचैम ने रविवार को जारी एक रिपोर्ट में दिया है।

एसोचैम और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) द्वारा किए गए संयुक्त अध्ययन में यह कहा गया है, ‘‘एक समर्पित मंत्रालय की स्थापना के बावजूद कई मंत्रालयों द्वारा कौशल विकास कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं और कौशल मंत्रालय की भूमिका महज समन्वयक की होती है।’’

एसोचैम द्वारा यहां जारी ‘भारत में कौशल विकास : एक विवरण’ रिपोर्ट में कहा, ‘‘केंद्र सरकार को विभिन्न मंत्रालयों से कौशल विकास की योजनाओं को लेकर एक मंत्रालय के हवाले कर देना चाहिए और उसका बजट करीब 25,000 करोड़ रुपये रखना चाहिए।’’

सरकार ने 2015 के अगस्त में एक अलग मंत्रालय कौशल विकास मंत्रालय की स्थापना की थी।

बयान में कहा गया, ‘‘गुणवत्ता, स्केलेबिलिटी और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए कौशल विकास के पारिस्थितिकी तंत्र को दुबारा स्थापित करने की जरूरत है और अनुमान है कि देश में केवल 2.3 फीसदी कार्यबल के पास ही औपचारिक कौशल प्रशिक्षण है, जबकि अमेरिका में यह संख्या 52 फीसदी, ब्रिटेन में 68 फीसदी, जर्मनी में 75 फीसदी, जापान में 80 फीसदी और दक्षिण कोरिया में 96 फीसदी है।’’

इसमें कहा गया, ‘‘देश एक ऐसी विपरीत स्थिति का सामना कर रहा है, जहां एक तरफ से उच्च शिक्षा प्राप्त युवा पुरुष व महिलाएं श्रम बाजार में रोजगार की तलाश में हैं। वहीं, दूसरी तरफ उद्योगों कुशल श्रम शक्ति की अनुपलब्धता की शिकायत कर रहे हैं।’’

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण प्रणाली (वीईटी) को कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि कुशल श्रम में मांग और आपूर्ति की कमी है।

अनुमान लगाया गया है कि साल 2022 तक देश में 10 करोड़ प्रशिक्षित श्रमिकों की वृद्धिशील मांग होगी, जबकि कार्यबल में शामिल होनेवाले एक करोड़ युवाओं को सालाना प्रशिक्षण देने की जरूरत होगी। जितनी जरूरत है, उसकी तुलना में कुशल श्रम की उपलब्धता केवल 25 लाख लोगों की है।

इस संबंध में केंद्रीय कौशल विकास और उद्यमिता मंत्री राजीव प्रताव रूडी ने इस हफ्ते की शुरुआत में कहा था कि देश में मैनुअल काम संतोषजनक स्तर का नहीं है और हमारी शिक्षा प्रणाली कौशल के खिलाफ है।

उन्होंने यहां संवाददाताओं से बात करते हुए कहा, ‘‘हमारे यहां जो बच्चे स्कूल में अच्छा नहीं करते, वो स्कूल छोडक़र आईटीआई में प्रशिक्षण लेते हैं, लेकिन वहां उन्हें माध्यमिक और उच्च माध्यमिक प्रमाणपत्र नहीं मिलता।’’

रूडी ने कहा, ‘‘इसका नतीजा यह है कि इंजीनियरिंग छात्रों के कुल उपलब्ध 18 लाख सीटों में से 8 लाख सीटें खाली रह जाती हैं।’’

उन्होंने घोषणा की कि देश में व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ाने देने के लिए सरकार सेंट्रल बोर्ड सर्टिफिकेशन फॉर इंडस्ट्रीयल ट्रेनिंग इस्टीट्यूट (आईटीआई) के गठन की योजना बना रही है, जो स्कूल समापन प्रणाणपत्र जारी करेगा, जो 10वीं और 12वीं के समकक्ष होगा।

इसके बाद आईटीआई, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड और भारतीय विद्यालय प्रमाणपत्र परीक्षा के स्कूलों के समकक्ष बन जाएंगे। इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि आईटीआई से शिक्षा हासिल करनेवाले छात्र आगे चलकर आधिकारिक शिक्षा प्रणाली के स्कूलों और कॉलेजों में भी अपनी पढ़ाई जारी रख सकें।

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