‘स्टेटस सिम्बल’ से बाहर निकलकर रोजगार के अवसर की भाषा अर्थात ‘लाइफ स्किल भाषा’ बन गई है अंग्रेजी

नोएडा : भारत जैसे बहुभाषीय समाज में किसी एक भाषा की प्रमुखता की कल्पना नहीं की जा सकती लेकिन विभिन्न क्षेत्रों में काम-काज की भाषा के रूप में जिस तरह अंग्रेजी का विकास हुआ है उसने उसकी स्वीकृति बढ़ा दी है। अब अंग्रेजी ‘स्टेटस सिम्बल’ से बाहर निकलकर रोजगार के अवसर की भाषा बन गई है। जिसे लाइफ स्किल भाषा कहा जा रहा है। ऐसे में यह जरुरी है कि इसका लाभ समाज के हासिए पर रहने वाले लोगों को भी मिले ताकि उनका जीवन बदल सके। आज अंग्रेजी को सामाजिक न्याय के एक उपकरण के रूप में देखा जाना चाहिए।

‘अंग्रेजी और सामाजिक न्याय’ विषय पर एक संवाददाता सम्मेलन में बोलते हुए देश के जाने-माने अंग्रेजी लेखक और ब्रिटिश लिंग्वा के प्रबंध निदेशक डॉ. बीरबल झा ने कहा कि सामाजिक न्याय के लिए आज अंग्रेजी भाषा का ज्ञान निहायत जरुरी है। उन्होंने कहा कि आज़ादी के दशकों बाद भी उच्च और उच्चतम न्यायालयों में काम-काज की भाषा अंग्रेजी ही बनी हुई है। एक सर्वेक्षण के अनुसार 98% इंजीनियरिंग ग्रेजुएट केवल अंग्रेजी न बोल पाने के कारण बेहतर रोजगार के अवसर से वंचित हो जाते हैं। यहां तक कि अंग्रेजी बोलने वाले युवक को अन्य भाषा बोलने वाले युवक की तुलना में 30-40 % अधिक सैलरी मिलती है।

आज सभी प्रतियोगिता परीक्षाओं में हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं की तुलना में अंग्रेजी माध्यम के अभ्यर्थी अधिक सफल हो रहे हैं। उच्च शिक्षा, राजनीति, पत्रकारिता, न्यायालय या प्राइवेट सेक्टर के विभिन्न क्षेत्रों में अंग्रेजी बोलने और उसमें काम करने वालों का जैसा वर्चस्व बना हुआ है, उसे कोई अनदेखा नहीं कर सकता। वास्तविकता तो यह है कि वर्तमान भूमंडलीकरण के दौर में जब विभिन्न क्षेत्रों में लगभग 85 % अंग्रेजी भाषा का प्रयोग हो रहा है तो ऐसे में अंग्रेजी के बिना विकास की कल्पना करना ही व्यर्थ है। यही कारण है कि भारत सरकार के ‘डाइरेक्टरेट ऑफ एम्पॉलयमेंट ट्रेनिंग’ ने स्पोकन इंग्लिश को स्किल की संज्ञा दी है।

डॉ. झा ने कहा कि आज जब हम डिजिटल भारत की बात करते हैं तब यह जरुरी हो जाता है कि अंग्रेजी लिटरेसी को एक जन आंदोलन के रूप में आगे बढ़ाया जाए ताकि सूचना प्रौद्यागिकी के विभिन्न साधनों का लाभ सभी लोग उठा सकें। आज देश में डिजिटल डिवाइड की तरह एक लैंग्वेज डिवाइड की स्थिति भी मौजूद है। इस बात से शायद ही कोई इनकार करे कि देश केवल सामाजिक-आर्थिक स्तर पर ही नहीं बल्कि भाषा के स्तर पर भी इंडिया और भारत में विभाजित है। चूंकि सामाजिक न्याय का उद्देश्य मानवीय समानता को स्थापित करके समान अवसर की उपलब्धता पर बल देना है, अतः भारत में अंग्रेजी को सामाजिक न्याय के साथ जोड़कर देखा जाए ताकि देश में मौजूदा सामाजिक-आर्थिक असमानता को कम किया जा सके।

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