स्किल्ड लोगों की पहचान करने के लिए पहली बार कराएगी सरकार ‘स्किल्स स्टॉक सर्वे’

नई दिल्ली : भारतीयों के अंदर कैसी स्किल है? वे नौकरी के लिए स्किल डिवेलपमेंट पर कितना खर्च करते हैं? क्या उन्हें लगता है कि बेहतर स्किल उन्हें बेहतर जॉब दिला सकती है? इसी तरह के कई सारे सवालों के जवाब जानने और स्किल्ड लोगों की पहचान करने के लिए केंद्र सरकार पहली बार सर्वे कराएगी। चार महीने तक चलने वाला यह सर्वे इसी महीने से शुरू होगा।

इसे ‘स्किल्स स्टॉक सर्वे’ का नाम दिया गया है। इससे पता चलेगा कि भारतीय लोग कितने स्किल्ड हैं। वे किन तरीकों से ट्रेनिंग लेना पसंद करते हैं। इससे स्किल डिवेलपमेंट प्रोग्राम्स को लेकर लोगों में जागरूकता के स्तर का भी पता चलेगा। लोगों की लॉन्ग टर्म और शॉर्ट ट्रेनिंग तक कितनी पहुंच है और किन क्षेत्रों में युवा स्किल प्रोग्राम्स में हिस्सा लेते हैं, इनकी जानकारी भी मिलेगी। ये प्रोग्राम कैंडिडेट पर क्या असर डालते हैं और हमारे यूथ में स्किल डिवेलपमेंट कोर्सेज करने की इच्छा है या नहीं, सर्वे के माध्यम से इनकी जानकारी मिलेगी।

NSDC के एमडी मनीष कुमार ने बताया कि इस सर्वे को सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) और नैशनल स्किल डिवेलपमेंट कॉरपोरेशन (NSDC) मिलकर करेंगे। इस सर्वे को 1,60,000 से ज्यादा हाउसहोल्ड के साथ शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जिला स्तर पर भी किया जाएगा। इससे सरकार को ‘स्किल इंडिया’ प्रोग्राम के लिए बेहतर कार्य योजना बनाने में मदद मिलेगी।

कुमार ने कहा, ‘CMIE देश में हाउसहोल्ड सर्वे करता है। वह हर तिमाही पिरामिड हाउसहोल्ड सर्वे भी करता है, जिससे इकॉनमी और बेरोजगारी दर से लेकर कंज्यूमर सेंटीमेंट का पता चलता है।’ उन्होंने बताया कि सर्वे के लिए अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी के तरीके का इस्तेमाल किया जाएगा। इसका प्रयोग अमेरिकी सरकार भी अपने नागरिकों के स्किल का पता लगाने के लिए करती है। इस सर्वे के आंकड़ों को मई, 2018 तक केंद्र सरकार को सौंप दिया जाएगा। देश के टॉप इकनॉमिस्ट्स ने स्किल स्टॉक सर्वे के लिए CMIE की पद्धति अपनाने की सलाह दी थी।

नैशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के 2015 के सर्वे के अनुसार, 15-59 से आयु वर्ग के लोगों में से सिर्फ 2.2 पर्सेंट लोगों की औपचारिक ट्रेनिंग तक पहुंच थी। हालांकि, भारत में अनौपचारिक तरीकों और जॉब ट्रेनिंग के जरिए स्किल विकसित करने का कल्चर है। इसके अलावा, केंद्र सरकार डिस्ट्रिक्ट एक्शन प्लान के माध्यम से जिला स्तर पर इकनॉमिस्ट क्लस्टर की स्थिति के जरिए भी इंडस्ट्री की डिमांड का भी अध्ययन कर रही है। उत्तराखंड में इसकी शुरुआत हो गई है।

कुमार ने बताया कि इस साल के मध्य तक हमारे पास एक रिसर्च बेस्ड तस्वीर होगी, जिससे पता चलेगा कि इंडस्ट्री में कैसी स्किल की डिमांड है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार के पास स्किल की परिभाषा है, लेकिन जो सर्वे अतीत में किए गए हैं, उन्होंने सिर्फ मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए जरूरी स्किल की तस्वीर पेश की है। आज की स्किल सर्विस सेक्टर के बारे में है। कुमार ने कहा, ‘यह सर्वे पूरे देश में स्किल रिक्वायरमेंट की मांग को समझने के लिए है। इसमें कंस्ट्रक्शन और ऑर्गनाइज्ड सेक्टर में काम करने वालों से बातचीत करनी होगी।’

सितंबर में स्किल डिवेलपमेंट ऐंड आंत्रप्रेन्योरशिप मिनिस्टर के रूप में कार्यकाल संभालने के बाद धर्मेंद्र प्रधान ने कहा था, ‘हमारे देश में स्किल्ड वर्कफोर्स की गिनती करने कोई ठोस पैमाना नहीं है। उन्होंने कहा था कि मिनिस्ट्री का फोकस स्किल इंडिया के लिए मोमेंटम पैदा करने के साथ ही इस पर भी होगा कि देश में स्किल्ड लोगों की वास्तविक संख्या जानने के लिए एक तंत्र विकसित किया जाए।’

खराब प्लेसमेंट और जॉब लॉस पर कुमार ने कहा था, ‘ग्रामीण क्षेत्रों में युवाओं के जॉब और स्किल ट्रेनिंग की फ्लैगशिप स्कीम ‘प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना’ के जरिये पिछले 5 वर्षों में टारगेट से कम प्लेसमेंट हो रहा है। हालांकि, अब इस आंकड़े में सुधार हो रहा है और इस स्कीम से जुड़ने वाले 40 पर्सेंट लोगों को जॉब मिल रही है।’

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