भिवाड़ी : क्षेत्र के आईटीआई परिसर में पिछले एक साल से चल रहे उदमा (यूपीवीसी विंडो एंड डोर मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन) के कौशल विकास केंद्र के बच्चे अब जर्मनी में अपने हुनर दिखाएंगे। इन बच्चों को जर्मन तकनीक और दोहरी व्यवसायिक शिक्षा प्रणाली से कुशल इंजीनियर्स बनाया जा रहा है। यूपीवीसी सेक्टर में इस तरह की तकनीक और शिक्षा से जुड़ा भारत का यह पहला प्रशिक्षण केंद्र हैं। वर्तमान में यहां पर भिवाड़ी एवं आसपास के 30 विद्यार्थी प्रशिक्षण ले रहे हैं। इनमें टॉप स्टूडेंट्स को आगे की पढ़ाई के लिए जर्मनी भेजा जाएगा। वहां योग्यता के आधार पर नौकरी मिलेगी। भारत में भी इन विद्यार्थियों को अच्छी कंपनियों में जगह मिलेगी। इस केंद्र में 6 माह का प्रशिक्षण प्राप्त कर 25 बच्चे भिवाड़ी, 10 जर्मन व भारतीय यूपीवीसी कंपनियों में बतौर इंजीनियर काम कर रहे हैं। केंद्र के संचालक एसएन शर्मा की मानें तो यूपीवीसी जर्मन तकनीक की देन हैं। दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में 100 से अधिक यूपीवीसी इकाइयां संचालित हो रही है। चूंकि यूपीवीसी इको फ्रेंडली और रिसाइकलेबल है। इसीलिए इस सेक्टर में हर वर्ष औसतन 20 प्रतिशत की ग्रोथ हो रही है। हमारे देश में अभी तक इस सेक्टर के संबंध में केवल सैद्धांतिक ज्ञान के आधार पर पढ़ाई कराई जा रही थी। जिससे इंजीनियरिंग की डिग्री-डिप्लोमा करने के बाद भी हमारे छात्र यूपीवीसी कंपनियों में सफल नहीं हो रहे थे।
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देश में इस तरह का यह पहला प्रयोग है। जिसमें बच्चों को एक महीने पढ़ाई और दो महीने यूपीवीसी कंपनी में व्यवसायिक प्रशिक्षण दिलाकर कोर्स पूरा कराया जा रहा है। साथ ही यूपीवीसी के आयटम कैसे बनते हैं, इसकी जानकारी किताबों की बजाय विजुअल्स के माध्यम से सिखाया जाता है। केंद्र की शुरुआत जुलाई 2018 में गई। उस समय यह प्रशिक्षण 6 माह का था। जिसके बाद इसे दो वर्ष का कर दिया गया। एक साल में कुल 45 बच्चे यहां से प्रशिक्षण ले चुके हैं। दो वर्ष के कोर्स में अब कुल 30 बच्चे निशुल्क प्रशिक्षण ले रहे हैं। जिसमें 6 महीने थ्योरी और 18 महीने प्रैक्टिकल ज्ञान रहेगा। वहीं इस कोर्स के लिए 10वीं योग्यता रखी है। प्रतिमाह बच्चों को 500 रुपए का पारितोषिक भी दिया जा रहा है। केंद्र में दो प्रशिक्षक लगाए हुए हैं। जिन्हें समय-समय पर जर्मनी से स्पेशल ट्रेनर आइडिया और उच्च प्रशिक्षण देने आते हैं। सालभर में तीन पर जर्मनी से ट्रेनर आ चुके हैं। वहीं एक माह पूर्व केंद्र का जायजा लेने जर्मनी के राजदूत भी आए थे।
यह है यूपीवीसी कांसेप्ट
यूपीवीसी (अनप्लास्टिसिज़ेड पॉलीविनयल क्लोराइड) कैमिकल के मिश्रण से बनाया गया एक मेटिरियल है। यह कांसेप्ट जर्मनी तकनीक से जुड़ा है। यूपीवीसी खिड़की और दरवाजे विनिर्माण की शुरूआत 2004 में हुई। जिसमें पीवीसी मेटिरियल से प्लास्टिक बाहर निकालकर इको फ्रेंडली विंडो-डोर्स का उत्पादन होने लगा। इस तकनीक से पूर्व लकड़ी और मेटल के खिड़की-दरवाजे बनाए जा रहे थे। जिसमें पेड़ों की कटाई, खनिज संसाधनों का भारी मात्रा में नुकसान बढ़ गया। साथ ही लकड़ी-मेटल की लाइफ 35 से 40 साल मानी है। लेकिन यूपीवीसी के कांसेप्ट ने विंडो-डोर्स कि लाइफ 70 साल तक तय कर दी। केंद्र की महिला प्रशिक्षक शोभिता की माने तो पिछले 5 सालों में यूपीपीसी मेटिरियल की डिमांड तेजी से बढ़ी है। यह मेटिरियल इको फ्रेंडली के साथ रिसाइकलेबल है। वहीं आग लगने जैसी स्थिति में भी यह जल्दी से नहीं पिघलता है। साथ यूपीवीसी से बने खिड़की-दरवाजों में पेंट करने की भी जरूरत नहीं रहती है।
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इसीलिए अलग है यह प्रशिक्षण : जर्मनी की एक सोसायटी जीआईजेड (अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए जर्मन सोसायटी) ने अपनी तकनीक के माध्यम से भारत में यूपीवीसी सेक्टर में कुशल इंजीनियर्स की पौध तैयार करने के लिए इस प्रशिक्षण केंद्र की शुरुआत की। जिसके लिए भारत सरकार के कौशल विकास मंत्रालय के साथ एटीएस (अप्रेंटिस ट्रेनिक स्कीम) के तहत कोर्स का टाईअप भी किया। वहीं ऐसे केंद्रों के संचालन के लिए उदमा को जिम्मेदारी सौंपी गई। इसी तकनीक और शिक्षा पद्धति से जुड़ा प्रशिक्षण केंद्र दिसंबर माह तक हैदराबाद, कोयंबटूर में शुरू होने की भी बात कही जा रही है। प्रशिक्षकों की माने तो अब से पूर्व अच्छे कॉलेजों से डिग्री-डिप्लोमा करने के बाद भी इस सेक्टर में हमारे बच्चों को नौकरियां नहीं मिल पा रही थी। क्योंकि कॉलेजों में सैद्धांतिक ज्ञान पर अधिक जोर दिया जा रहा है। कंपनी में नौकरी के लिए किताबी ज्ञान के साथ व्यवसायिक प्रशिक्षण की अधिक जरूरत होती है। वहीं आम कॉलेजों में टेक्नीकल इंजीनियरिंग की कमी से छात्र पिछड़ रहे हैं। जबकि कंपनियों में आज जरूरत ही व्यवसायिक और टेक्निकल एक्सपर्ट इंजीनियर्स की है। उदमा ने जर्मन तकनीक व उनकी दोहरी व्यवसायिक पद्धति के साथ भारत के टॉप कॉलेजों के सैद्धांतिक ज्ञान को मिश्रित करते हुए ऐसे प्रशिक्षण केंद्र के संचालन की कमान संभाली। जिसमें एक 10वीं पास छात्र भी कुशलता हासिल कर 6 माह में ही एक अच्छे तरीके से मशीन ऑपरेट कर सकता है।
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