युवाओं में कौशल विकसित करने की जरूरत: प्रधान न्यायाधीश

शिमला : हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति ने कहा, “भूमि सुधार सन् 1950 से ही एक अधूरी परियोजना रही है और हमारे विकास से कम से कम रोजगारों का सृजन होता है।”

उन्होंने कहा कि आज की तारीख में शहरी मध्यम वर्ग में आने वाली श्रमशक्ति कुल आबादी का मात्र दो फीसदी है। न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा कि प्रासंगिक नौकरियों के लिए तत्काल कौशल प्रदान करने, कृषि भूमि तथा बाजार कानूनों का एक नेटवर्क बनाने की तत्काल जरूरत है।

यह बात स्वीकार करते हुए कि लोगों तक न्याय पहुंचाना न्यायपालिका के लिए ही एक चुनौती बन गई है, उन्होंने कहा, “निष्पक्ष तथा कम से कम समय में लोगों को न्याय प्रदान करना कई कारणों से एक सपना बन गया है। इन कारणों को दूर करने की जरूरत है।” उनके मुताबिक, मध्यस्थता भविष्य में एक बड़ी भूमिका अदा करेगी।

न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा कि पुनरुत्थानशील भारत वैश्विक प्रतियोगिता, सामाजिक समावेश तथा पर्यावरणीय निरंतरता सहित कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। उन्होंने कहा कि किसानों द्वारा बढ़ती आत्महत्या तथा पुनरुत्थान एक साथ नहीं चल सकता।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी डिजिटल इंडिया पहल का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा कि देश में 33.2 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ता तथा 70 करोड़ लोगों के पास स्मार्टफोन है। आधार दुनिया की सबसे बड़ी डिजिटल अवसंरचना है। उन्होंने कहा, “लेकिन यह हमारी कहानी का एक पक्ष है।”

वहीं, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मंसूर अहमद मीर ने कहा कि शिक्षित लोगों को तर्कपूर्ण व वैज्ञानिक ढंग से सोचना चाहिए, जैसा शिक्षित वर्गो का एक बड़ा तबका नहीं कर रहा है।

मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कहा कि दीक्षांत समारोह में लड़कों से अधिक लड़कियों की संख्या देखकर उन्हें बेहद खुशी हो रही है।

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